सोॐ (नादान मुसाफिर)


देखना है तो .....
दुसरो में उसकी अच्छाई देखो, और स्वयं में अपनी बुराई ढूंढो

दुखिया है संसार मुसाफिर,नैया भी है मझधार मुसाफिर
आपस में जब हाथ मिलेंगे, होगा बेड़ा पार मुसाफिर

अवसर को पहचान मुसाफिर, सीख गुरू से ज्ञान मुसाफिर
चूके तो पछतावा निश्चित, युग का यही विधान मुसाफिर

शब्द शब्द बलवान मुसाफिर, यही मान अपमान मुसाफिर
बाँटो जितना, बढता जाता, दान करो नित ज्ञान मुसाफिर

खुद का बन्धन तोड़ मुसाफिर, खुद को खुद से जोड़ मुसाफिर
कदम उठाकर चतुराई से, पार करो हर मोड़ मुसाफिर

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सेवादार

सेवादार तो एक ईट है,

जिसे सेवा की भट्टी में डालकर निखारता है सतगुरु |

खुद का और अपनों का आईना दिखाता है सतगुरु |


सेवादार बनता है समर्पण से,
समर्पण होता है प्रेम से,
प्रेम उत्पन्न होता है, सच्चे भावों से,
सच्चे भाव मिलते हैं श्रद्धा से,
श्रद्धा मिलती है भगवान से,
और भगवान मिलते हैं सच्चे गुरुओं से |
इसलिए मत भूल, सेवा देता और कराता है सतगुरु |

न कर सेवा "सोम"तू किसी मतलब से,
कर सेवा तू निस्वार्थ भावना से |
सेवा तो एक अग्नि - कुंड जिसमें,
डालनी है आहुति हमें अपने स्वार्थी विचारों की |
लाज रखनी है हमें इस चोले की,
जो दिया है गुरु ने हमें किसी आस से |
न देख अवगुण दूसरों के,
जरा सर झुकाकर देख अपने अंतर में |
न खुद से अधिक अवगुणी किसी को पाएगा |

कुछ लाभ नहीं ऐसी सेवा से,
गर हुई कोई रूह खफा हमसे,
करना है गर अपने सतगुरु को खुश,
तो रख ध्यान हमेशा लगे न ठेस किसी के दिल को,
क्योंकि हर दिल में तो वही वसता है |
गर देखोगे हर दिल में तो उसको ही पाओगे |

ढूंढा जो तुझे पाया तेरा पता नही
पाया जो तेरा पता अब मेरा पता नही
Don't search god
क्योंकि
भगवान से मिला नही जाता 
भगवान में मिला जाता है
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मैं क्या बतलाऊँ कौन हूँ ???

मैं कभी जीत हूँ तो कभी हार भी हूँ मैं 
मैं कभी जीवन हूँ तो कभी मृत्यु भी हूँ मैं 
मैं कभी अच्छा हूँ तो कभी बदनाम भी हूँ मैं 
मैं कभी आगाज़ हूँ तो कभी अंजाम भी हूँ मैं 

मैं कभी पुत्र हूँ कभी माता हूँ, तो कभी बाप भी हूँ मैं 
मैं कभी पर्वत, मैं कभी खाई हूँ,तो खुद की परछाई भी हूँ मैं 
मैं कभी भेद खोलता सत्य हूँ, तो कभी रहस्य छुपाता मौन हूँ मैं, 
मैं कभी दुष्ट पापी मूढ़मति आत्मा हूँ तो परम सत्य परमात्मा भी हूँ मैं 

मैं क्या अब अपना परिचय दूं ???
मैं कभी ओहम कभी सोहम तो कभी सोॐ नाथ हूँ मैं 


मैं क्या बतलाऊँ कौन हूँ ???

सेवक सोॐ नाथ -----9555779119


somvir


मौत ने पूछा कि-

मैंआऊंगी तो स्वागत

करोंगे कैसे,


मैंने कहा कि-

राहों में फूल बिछाकर

पूछूँगा

आने में देर इतनी कैसे"

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जो सच को ईमान बना लेते हैं,
अपने आप को इन्सान बना लेते हैं |
आ जाता है सच पर मरना जिन्हें,
वो मरने को वरदान बना लेते हैं 



इबादत करते हैं जो लोग जन्नत की तमन्ना में,
वह इबादत नहीं, एक तरह की तिजारत है ||



आग लगी आकाश में, झर झर गिरे अंगार !
संत न होते जगत में ,तो जल मरता संसार !!









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