Mar 20, 2017

🚩 ना जले धरती ना जले आकाश




ना जले धरती ना जले आकाश
हुआ धूणे का प्रकाश........


नाथ धूणा वो धूणा होता है जहाँ पर सभी शक्तियां नतमस्तक होती है

धूणे की जय 
धूणे वालो की जय जय 


बोलिये श्री शम्भू जती गुरु गोरखनाथ की जय 

माया स्वरूपी दादा मछेंदर नाथ की जय, 

नवनाथ चौरासी सिद्धों की जय, 

अटल क्षेत्र की जय, 

काल भैरवनाथ की जय, 

ज्वाला महामाई की जय, 

 सनातन धर्म की जय, 

अपने-अपने गुरु महाराज की जय 

जीव जगत की जय, 

बोल साचे दरबार की जय, 

हर हर महादेव की जय। 


         शेली श्रृंगी शिर जटा झोली भगवा भेष 
         कानन कुण्डल भस्म लसै, शिव गोरक्ष आदेश 




ॐकार तेरा आधार,तीन लोक में जय-जयकार 


नाद बाजे काल भागे,ज्ञान की टोपी गोरख साजे 


गले नाद पुष्पन की माला, 


रक्षा करे श्री शम्भुजती गुरु गोरक्षनाथजी बाला 




चार खाणी चार बानी, चन्द्र सूर्य पवन पानी 


एको देवा सर्वत्र सेवा, ज्योत पाटलो परसों देवा 


कानन कुण्डल गले नाद, करो सिद्धो नादोकार 


सिद्धो गुरुवरों को आदेश आदेश 


नाथजी की फौज करेगी मौज 



श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश 

🚩पुरूष शब्द का अर्थ






��अलख पुरुष को आदेश��


पुरूष 



अर्थात :- पुरूष शब्द का अर्थ कोई आदमी नर इत्यादि नहीं है। पुरूष का अर्थ इसी शब्‍द में छिपा है।
पुर का अर्थ होता है: नगर
 पुरूष का अर्थ होता है: नगर के भीतर जो बसा है। 
हमारा शरीर नगर है सच मैं ही नगर है। विज्ञान की दृष्‍टि में भी नगर है।एक शरीर में लगभग सात अरब जीवाणु होते है। एक-एक शरीर में सात अरब जीवाणु है। सात अरब जीवित चेतनाओं का यह नगर है। 
जब हम जाग जायेंगे जान लेंगे कि—
न मैं देह हूं, न मैं मन हूं, न मैं ह्रदय हूं। मैं तो केवल चैतन्‍य हूं। 
उस क्षण हम पुरूष हो जायेंगे
स्‍त्री भी पुरूष हो सकती है
 पुरूष भी पुरूष हो सकते है। 
स्‍त्री और पुरूष से इसका कुछ लेना देना नहीं है। 
स्‍त्री की काया का परकोटा भिन्‍न है। यह परकोटे की बात है। घर यूं बनाओ या यूं बनाओ। घर का स्‍थापत्‍य भिन्‍न हो सकता है। द्वार-दरवाजे भिन्‍न हो सकते है। घर के भीतर के रंग-रौनक भिन्‍न हो सकती है। घर के भीतर की साज-सजावट भिन्‍न हो सकती है "सोॐ'' मगर 
घर के भीतर रहने वाला जो 
मालिक है, 
वह एक ही है। 
वह न तो स्‍त्री है, न पुरूष 
स्‍त्री और पुरूष दोनों के भीतर जो बसा हुआ चैतन्‍य है, 
वही पुरूष है।
अलख पुरुष को आदेश






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🚩अंतरात्मा भी हमसे बाते करती है





आदेश आदेश

क्या अंतरात्मा भी हमसे बाते करती है ???????

जी हाँ हमारी अन्तरात्मा हम जोे सबमे होती है वो हमें पग-पग पर कदम कदम पर हमे बुराई और पाप से रोकती है। जैसे जैसे हम कोई गलत कार्य या पापकर्म करने की ओर चलते है तो तब तब आत्मा हमें धिक्कारती या कचोटती है कि अनिष्ट मार्ग पर न जाओ पाप से बचो दुष्कर्म से अपनी रक्षा करो । ये ही आत्मा की आवाज होती है"सोॐ''

आत्मा की आवाज तो सभी को सुनाई पड़ती है। किन्तु ये भी हो सकता है कि अधिक पापों के कारण इस की बोलने की शक्ति धीमी हो जाये या कुछ फीकी-सी पड़ जाये। कम सुनाई आने लगे किन्तु यह रहती है अवश्य। किसी में शक्तिशाली तो किसी में मन्द
 कर्मयोधा धर्मयोद्धा ईश्वर में विश्वासी या भक्तों के हृदय में तो ये बहुत तीर्व से बोलती है बात करती है और उनकी रक्षा करती है और समय समय पर मार्गदर्शन भी करती है।

किन्तु नीच दुष्ट पापी व्यक्तियों में नीचता और अनाचार के कारण यह मोह स्वार्थ और हिंसा में दब सी जाती है।
 अतः आप सभी ज्ञानीजनों से विनती है की इसे दबने न दे इससे बाते करे इससे विचार विमर्श करते रहे। सोॐ अगर तू ऐसा करता रहेगा तो ये भी तेरी मार्गदर्शक बन जायेगी 
जय गुरु धर्मनाथ आदेश आदेश 

🚩काया गढ़ में दस दरवाजे

काया गढ़



दसमं द्वार काया गढ़ में कहाँ होता है ??

मानव काया (सरीर ) में नो (9) दरवाजे तो दिखाई देते है किन्तु हमारी काया गढ़ में दस दरवाजे होते है।
जिसमे से 9 दरवाजे सभी के खुले है।
जब मृत्यु के समय प्राण निकलता है तो इन्ही 9 दरवाजो से निकलता है।

अर्थात 

आँखों के 2 दरवाजे
नाक के 2 दरवाजे
कान के 2 दरवाजे
मुँह का 1 दरवाजा
मूत्र का 1 दरवाजा
मल का 1 दरवाजा

ये 9 दरवाजे ओपन दिखाई देते है 
लेकिन ये 10 वा दरवाजा हमारे सिर पर होता है देशी भाषा में जहां पर हमारा एंटीना होता है वहाँ पर ही दसवा द्वार होता है। 
इसी दरवाजे को योगी खोलने की कोशिस करते है और खोलते भी है ये सब विस्तार से गुरु महाराज जी समझा जा सकता है ।
इसे सहस्राह चक्र भी कहते है इस चक्र को जागृत करने से शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है
ये ही वो द्वार दरवाजा है जिसे खोलकर "सोॐ'' अपना जन्म मरण मिटा सकता है। 
 मूलाधार चक्र से चक्र दर चक्र को भेदन करते हुए योगी इसी दरवाजे को पार करता है
अलख आदेश योगी गोरख
 गुरु धर्मनाथ को आदेश आदेश


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🚩खिलौना माटी का





मिटटी की महिमा 


ईश्वर चाहता तो मनुष्य का शरीर लोहे चांदी सोने या हीरे से भी बना सकता था ।
लेकिन मिटटी को ही क्यों चुना ?
 क्योंकि मिट्टी सबसे अनमोल होती है ।

मिटटी में जैसा बीज डालेंगे वैसी की कई गुणी फसल प्राप्त करोगे

 अच्छे कर्मो का बीज तो अच्छी फसल बुरे कर्मो का तो बुरी फसल

 मनुष्य अपने कर्मो के द्वारा इस मिट्टी रूपी देह में से जैसी चाहे फसल उत्तपन कर सकता है

किन्तु लोहे चांदी सोने अथवा हीरे में से कभी अंकुर नहीं फूट सकते।

 इसलिए ईश्वर ने मिट्टी से शरीर को बनाया है।

लेकिन ईश्वर की यह बात "सोॐ" को समझ में नहीं आती ।
जय गुरुदेव योगी धर्मनाथ आदेश
"*"*"*"*" "*"*"*"*"*"*"*"*"*"*"
आगे आगे गोरख जागे

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🚩मैं भी एक पागल हूँ तू भी एक पागल है





मैं भी एक पागल हूँ
तू भी एक पागल है

कोई थोड़ा है कोई ज्यादा है 
कोई पूरा है कोई आधा है ।
कोई भक्ति में पागल है तो 
कोई माया में पागल है 
कोई अपने लिए पागल है 
कोई दूसरे के लिए पागल है
यह समस्त दुनिया ही पागल खाना है

लेकिन यह पागल होते कौन हैं

पा अर्थात ----पाने के लिए
गल अर्थात --- गल जाना

अर्थात् जो पाने के लिए गल जाये 
जो खुद की खुदी को मिटा दे 
उसको पागल ही कहना उचित है

पागल ही तो है इसलिए हम सब पागल ही तो है 
"सोॐ'' भक्ति में थोड़ा सा भोलापन और पागलपन मिलाकर देख 
ऐसी भक्ति की शक्ति का क्या कहना
अलख आदेश आदेश आदेश

🚩सतसंग की महिमा






आदेश आदेश

सतसंग की महिमा
विचार करने योग्य
सतसंग जब हम जाते है या करते है तो हमे क्या प्राप्त होता है और कैसे?
ज्यादा तो हमे कुछ मालूम नही फिर भी एक छोटा सा उदहारण है सायद आप सबको पसन्द आये ।

हमारे पास 1 वस्तु है 
और आपके पास भी 1वस्तु है 
अब हम इन वस्तुओ को एक दूसरे से बदल लेते है 
अब भी हम दोनों के पास 1-1(एक एक) ही वस्तु रहती है

किन्तु

 सोचो अगर वस्तुओ की जगह हम अपने ज्ञान की अदला बदली करे तो क्या होगा ??
तो हम दोनों के पास एक एक नही 2-2(दो -दो) ज्ञान विचार हो जायेंगे 

बाकी आप खुद निर्णय ले"सोॐ'' 
जय नाथ जी की आदेश आदेश
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🚩मैं आदि शक्ति हूँ



मैं आदि शक्ति हूँ।
समस्त ब्रम्हांड के सञ्चालन में जो ऊर्जा हैं, 
वो मैं हूँ।
सर्व भूतों के श्वास में जो तपन हैं 
मैं वो हूँ।
मनुष्य के नाभि में स्थित कुण्डलिनी शक्ति मैं हूँ।
गृह नक्षत्रो की गति मैं हूँ।
विष्णु का सुदर्शन मैं हूँ, 
महादेव का त्रिशूल मैं हूँ।
सौर मंडल में विचरने वाली विद्युत शक्ति मैं हूँ।
प्रकृति की प्रचंड शक्ति मैं हूँ।
मैं ही जगदम्बा हूँ 
और काली भी मैं ही हूँ।
मैं ही जन्म देती हूँ और संहार भी मैं ही करुँगी।
मैं ही महाप्रलय पर संपूर्ण जगत को महादेव के त्रिनेत्र के रूप में अपना ग्रास बना लेती हूँ।
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जय आदि शक्ति




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🚩शिशु और गर्भ में ध्यान-मुद्रा



शिशु और गर्भ में ध्यान-मुद्रा 

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जब शिशु गर्भ में था और नाल (शरीर के नाभि-कमल स्थित एक नाड़ी होती है)
से युक्त था, तब वह ध्यान-मुद्रा में आत्म-ज्योति का दर्शन करता रहता था, जो दिव्यानन्द से युक्त था, 
जिसकी अनुभूति में शिशु मस्त पड़ा रहता है, जिसको बाहय दृश्य दर्शन की आवश्यकता ही नहीं पड़ती है। 
उसी ध्यान मुद्रा में ही शिशु की पैदाइश होती है, जिसके कारण आँखें बन्द रहती हैं और नाल जब कटवा दी जाती है 
तब आत्म-ज्योति से सम्बन्ध कट जाता है, 
तब शिशु को परेशानी न हो या कष्ट न हो अथवा जीव उस ज्योति की खोज में शरीर छोड़कर न चला जाय, 
इसीलिए प्रसूति-गृह में शिशु की उत्पत्ति से पूर्व ही ‘दीप’ जला दिया जाता है

शिशु जो ब्रह्म-ज्योति का साक्षात्कार करता हुआ दिव्यानन्द में मस्त था, 
वहीं अब नाल कट जाने से ब्रह्म-ज्योति का दर्शन होना तो बन्द हो जाता है, 
तब शिशु का जीव आत्म-ज्योति की तलाश में शरीर छोड़कर न चला जाय या विक्षिप्त न हो जाय, 
इसी को यमदूत का ले जाना या छूना कहा जाता है। यही कारण है कि दीप जलाकर शिशु को भरमाया जाता है कि 
ऐ शिशु ! मत घबराओ, जिस आत्म-ज्योति को देखते थे, देखो ! यह दीप-ज्योति वही ब्रह्म-ज्योति है ! 
इतना बड़ा पाखण्ड, धोखा, छल एवं फंसाहट शिशु के जीव के साथ करते हैं।

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गर्भस्थ शिशु जब गर्भ में रहता है तो उसका सम्बन्ध ब्रह्म-ज्योति रूप ब्रह्म से रहता है और जब पैदा होता है, 
तब भी नाल के माध्यम से ब्रह्म-ज्योति से सम्बन्ध कायम रहता है, जिसके कारण शिशु की जिह्वा, जिह्वा मूल से ही ऊर्ध्वमुखी होकर कण्ठ-कूप में प्रवेश कर ‘अमृत-पान’ करती रहती है। 
यही कारण है कि शिशु की जिह्वा उल्टी रहती है।
जब शिशु का नाल काट दिया जाता है, उसी समय ब्रह्म-ज्योति से उसका सम्बन्ध टूट जाता है, 
जिसके कारण जिह्वा को मुख में अंगुली डालकर कण्ठ-कूप से बाहर नीचे लाकर मुख में सामान्य रूप में कर दिया जाता है और कहा जाता है कि मुख के अन्दर कण्ठ से ‘लेझा’ निकाला गया है। यह उन लोगों को कौन समझाये कि ‘लेझा’ नहीं निकाला गया, बल्कि शिशु जो अमृत-पान कर रहा था, उसका उससे सम्बन्ध छुड़ा दिया गया है ताकि शिशु सांसारिक बनकर गृहस्थ जीवन व्यतीत करे।

अमृत-पान वह क्रिया है जिसके लिए बहुत-बहुत से योगी जीवन भर ‘खेचरी मुद्रा’ की क्रिया का अभ्यास करते रहते हैं। यह सबसे कठिन मुद्रा मानी जाती है। योगियों की माता भी यही मुद्रा कहलाई है।

अमृत-पान से वंचित होने पर जो लोग उस समय उस स्थान पर उपस्थित रहते हैं, बार बार यह कहना प्रारम्भ कर देते हैं कि जल्दी मधु चटाओ, 
नहीं तो गला सूख जाएगा। झट से ‘मधु’ लाया और चटा दी। शिशु बेचारा क्या करे ? 
उसको क्या पता कि पैदा होते ही मेरा जीवन धोखे, छल, पाखण्ड और मिथ्या भ्रम में डाला जा रहा है। अमृत-पान ही कर रहे हैं।

गर्भस्थ शिशु जब गर्भ से बाहर आता है तो देखा जाता है कि उसका कान ‘एक विचित्र किस्म के ध्वनि अवरोधक पदार्थ’ रूप ‘जावक’ से बन्द रहता है, जिसके कारण बाहरी कोई ध्वनि या शब्द अन्दर नहीं पहुँच पाती है। गर्भ में नाल के माध्यम से शिशु ब्रह्म-ज्योति से सम्बंधित रहता है जिसके कारण अन्नाहार और जल के स्थान पर अमृत-पान करता रहता है। ब्रह्म के पास निरन्तर दिव्य-ध्वनियाँ होती रहती हैं, जिसको सुनते हुये शिशु मस्त पड़ा रहता है जो ‘अनहद्-नाद’ कहलाता है। 
शिशु की नाल जब काट दी जाती है तो ब्रह्म से सम्बन्ध भी कट जाता है और तब दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देनी बन्द हो जाती हैं, 
जिसके स्थान पर माता-पिता या पारिवारिक सदस्य लोग शिशु को उन दिव्य ध्वनियों के स्थान पर नकली ध्वनियाँ थाली बजाकर कि ये वही दिव्य ध्वनियाँ हैं, सुनाते हैं। "सोॐ "
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और जब कोई सन्त-महात्मा फँसे हुये व्यक्ति का पुनः ब्रह्म-ज्योति से सम्बन्ध जोड़ कर पारिवारिक, सामाजिक आदि बन्धन से मुक्त करते हैं तो कुछ स्वार्थी लोग, सन्त-महात्मा को ही ढोंगी, पाखण्डी, आडम्बरी आदि कहकर बदनाम करते हैं"सोॐ'
जय गुरुदेव योगी धर्मनाथ जी को ~ आदेश आदेश



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🚩अपनी शक्ति को पहचानो






अपनी शक्ति को पहचानो।







ॐ गुरूजी आदेश गुरूजी 
ईश्वर ने हमारे भीतर ही चमत्कारी शक्तियों का भण्डार छुपाया हुआ है 
इसलिए कहा जाता है मानव में अद्भुत शक्तियां निहित हैं.
हमारे कहने का सार यह है कि मानव शरीर असीम ऊर्जा का कोष है. इंसान जो भी चाहे वो हासिल कर सकता है. मानव के लिए कुछ भी असाध्य व दुर्लभ नहीं है. लेकिन बड़े दुःख की बात है की हमे स्वयं(सोम)को ही विश्वास नहीं होता कि उसके भीतर इतनी शक्तियां विद्यमान हैं.

अपने अंदर की शक्तियों को पहचानिये, उन्हें पर्वत, गुफा या आकाश में मत ढूंढिए बल्कि अपने अंदर खोजिए और अपनी शक्तियों को निखारिए. हथेलियों से अपनी आँखों को ढंककर अंधकार होने की शिकायत मत कीजिये. आँखें खोलिए और अपने भीतर झांकिए और अपनी अपार शक्तियों को जागृत कीजिये ।
अब दूसरा सवाल यह आता है कि अगर हमारे अंदर ही ये शक्तियाँ हैं तो हम इसका प्रयोग कैसे कर सकते है? 
तो आइये आज हम अपने मन की शक्तियों में से एक शक्ति का प्रयोग करना सीखते हैं –
जब कभी आप समस्याओं से घिरे हों और उनमें से निकलने का रास्ता न मिल रहा हो या आपको किसी विशेष कार्य के लिए किसी खास idea की ज़रूरत हो तो आप अपनी शक्ति का इस्तेमाल कर सकते हैं.

– रात को सोने से पहले सबसे पहले अपने मन को कुछ देर relax कर लें. तब तक, जब कि कुछ हद तक मन से विचार खत्म न हो जाएं. फिर relax mind से अपने मन को कहिये – “मुझे यह problem है और इस problem का हल मुझे नहीं मिल रहा. मुझे पता है कि तुम्हारे पास इस problem का हल है. अभी तो मैं सो रहा हूँ लेकिन जितनी जल्दी हो सके तुम इस problem का हल ( solution ) मुझे दे दो. मुझे इसकी बहुत ज़रूरत है. यह तुम्हारे लिए मेरा आदेश (order ) है”
ऐसा कहकर आप शांत होकर सो जाईये और अपनी उस problem के solution का इंतज़ार कीजिये. बहुत जल्दी ही आपको आपका solution मिल जाएगा. या सपने द्वारा, या किसी व्यक्ति द्वारा या आपके मन में खुद ही वो idea आ जाएगा जिसका आप बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे.
यदि उत्तर न मिले तो इसका अर्थ है कि आपका मन शांत नहीं है. अशांत मन कभी भी आपकी problems को solve नहीं कर सकता. इसलिए मन को शांत करना सबसे ज़्यादा ज़रुरी है. मन जितना अधिक शांत होगा, उतनी जल्दी ही आपको आपके सवाल का जवाब मिल जाएगा.
यह केवल एक शक्ति है जो आपको आपकी problem का solution दे रही है. ऐसी असीम शक्तियाँ हम सभी के अंदर है, ज़रूरत है तो केवल मन को शांत करने की. मन अशांत होने के कारण हम अपनी शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर पाते. तो आइये आज से हम (सोम) और आप एक संकल्प लेते हैं कि जीवन में चाहे कोई भी परिस्थिति आ जाए, हम अपने मन को अशांत नहीं होने देंगे, धैर्य से काम लेते हुए अपने मन की शक्तियों का सही इस्तेमाल करेंगे ।



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🚩मुस्कुराओ







मुस्कुराओ.. क्योंकि यह मनुष्य होने की पहली शर्त है। एक पशु कभी भी नहीं मुस्कुरा सकता।

मुस्कुराओ.. क्योंकि मुस्कान ही आपके चहरे का वास्तविक श्रंगार है। मुस्कान आपको किसी बहुमूल्य आभूषण के अभाव में भी सुन्दर दिखाएगी।

मुस्कुराओ.. क्योंकि दुनिया का हर आदमी खिले फूलों और खिले चेहरों को पसंद करता है।

मुस्कुराओ.. क्योंकि क्रोध में दिया गया आशीर्वाद भी बुरा लगता है और मुस्कुराकर कहे गए बुरे शब्द भी अच्छे लगते हैं।

मुस्कुराओ.. क्योंकि परिवार में रिश्ते तभी तक कायम रह पाते हैं जब तक हम एक दूसरे को देख कर मुस्कुराते रहते हैं।

मुस्कुराओ.. क्योंकि आपकी हँसी किसी की ख़ुशी का कारण बन सकती है।

मुस्कुराओ.. कहीं आपको देखकर कोई किसी गलत फहमी में न पड़ जाए क्योंकि मुस्कराना जिन्दा होने की पहली शर्त भी है।

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🚩संकल्प, और समर्पण

योग में कहा गया है कि सुख या मोक्ष प्राप्त करने के लिए दो रास्ते हैं- 
संकल्प, 
और समर्पण

संकल्प का मार्ग कर्म योगियों और समर्पण का मार्ग भक्तों का। जिस मनुष्य का स्वभाव भावना या भक्ति में लीन होता है उसे भक्ति योग में रमना चाहिए।

��भक्ति का भाव शरीर और मन-मस्तिष्क के कष्ट मिटा देता है। अधिकतर साधु-संत के मार्ग से ही मोक्ष को पहुँचे हैं। भक्ति का मार्ग बहुत ही सरल जान पड़ता है, लेकिन यह सबसे कठिन है और सबसे सरल भी।

��भक्त कौंन : मंदिर में जिन लोगों को आप देखते हैं उनमें से कितने भक्त होंगे यह शोध का विषय है। भगवान से कुछ माँगने वालों की ही संख्या वहाँ ज्यादा होगी। जब मनुष्य अपने सांसारिक स्वार्थ को छोड़कर भगवान को भजता है तब ही वह ‍भक्ति योग का मार्गी कहलाता है। भक्त को साधक, उपासक, भजने वाला, व्रती, तपस्वी इत्यादि कहा जाता है।

��भक्ति शब्द का अर्थ : भक्ति शब्द की उत्पत्ति 'भज्' धातु से है, जिसका अर्थ होता है, ‘भजना’ एवं 'भाव' है। ‘सतत् रूप से सकारात्मक विचार और भाव से भगवान को भजना, याद करना या उनके प्रति समर्पण कर श्रद्धा और सबुरी का भाव रखना। भक्ति को वंदना, उपासना, पूजा, तपस्या, आराधना, जप, साधना, भजन, कीर्तन, होम आदि भी कहा जाता है,

किंतु इसके समानार्थी शब्द प्रार्थना, आस्था, ‍विश्वास और श्रद्धा को माना जा सकता है।

��तत्व ज्ञानी विस्तार को नहीं सार को पकड़ता है। भक्ति में वही रमता है जिसकी भगवान में श्रद्धा है तब वही व्यक्ति भक्त कहलाता है। भक्ति के लिए निष्ठा एवं समर्पण होना जरूरी है।

��भक्ति का लाभ : भक्ति का आधार सकारात्मक भावना है। हमारे भीतर प्रतिक्षण अच्‍छी और बुरी भावना की उत्पत्ति सांसारिक प्रभाव से होती रहती है। इस प्रभाव से बचकर जो व्यक्ति भगवान का भजन, चिंतन या मनन करते हुए स्वयं के भीतर सकारात्मक और निर्मल भाव का विकास करने लगता है तो इसके अभ्यास से धीरे-धीरे उसके आस-पास शांति और सुख का वातावरण निर्मित होने लगता है।

उसके जीवन में सभी कार्यों के शुभ परिणाम आने लगते हैं। भगवान से बगैर माँगे उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होने लगती है। यह स्थिति शरणागति की होती है। शरणागति की स्थिति में भक्त लगातार भगवान की शरण में होता है।

��भक्ति की विशेषताएँ : यह मार्ग बहुत ही सरल है। भक्त कोई भी हो (बन) सकता है। यह मार्ग सभी के लिए समान रूप से खुला है। भक्त होने के लिए किसी भी प्रकार की योग्यता, ज्ञान आदि की आवश्यकता नहीं। बस भक्त का सरल, सहज एवं निर्मल होना ही भक्ति के लिए जरूरी है। जो व्यक्ति अद्वैष, मैत्री भाव युक्त, करूणा युक्त, अहंकार रहित, सुख-दुख सहने में सक्षम है वही भक्त बनने योग्य है।
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अलख आदेश योगी गोरख
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🚩निगल जायेगी धरा सबको








वक्त के साथ निगल जायेगी धरा सबको

किसी ने भस्म होना है किसको ने दफ्न होना है 

ना मेरा एक होगा न तेरा लाख होगा 

न वक्त तेरा होगा न मेरा वक्त होगा 

गरूर न कर शरीर का 

तेरा भी खाक होगा 

मेरा भी खाक होगा 

इस पृथ्वी लोक पर सब नाशवान है जो इस पृथ्वी पर जन्म लेता हे उसे मृत्यु को प्राप्त होना ही है 
हमारे जन्म से पहले हम मात्र शुन्य मे थे। 
मृत्यु पश्चात् शून्यता मे समा जाएगें पूरा ब्रह्माण्ड मात्र कणों से बना है।
अतः मृत्यु पश्चात् सब कणों मे समा जाता है आत्मा परमात्मा मे समा जाती है।
जीव आत्मा जीवित रहते अपने किये हुए कर्म का फल भोगते हुए पुनः जन्म लेती हे।

 "सोॐ'' ये अटल सत्य है -
ब्रह्म के इस ब्रह्माण्ड में विष्णु जी पालन-पोषण करते है और अन्त मे सब शिव में समा जाता है ।
फिर पुन शिव से उत्पत्ति होती हे
ये ही जीवन चक्र है । जय गुरुदेव
अलख आदेश योगी गोरख
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ॐ ही ॐ ॐ ही ॐ ॐ ही ॐ

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🚩माया ठगनी

घूम रही माया ठगनी, ठग लेगी तेरी गठरिया रे
मोह का पिंजरा ये जग है, यहां कल की नहीं खबरिया रे




घूम रही माया ठगनी...
ऊपर तेरे ऊंचा परबत, नीचे गहरी खाई है
मौत पकड़ ले जायेगी इक दिन, चले नहीं चतुराई है
भले-बुरे हर काम पे, उस मालिक की कड़ी नजरिया रे...
घूम रही माया ठगनी...

माया बहुत ही लुभावनी है । 
जिस प्रकार मीठी खांड अपनी मिठास से हर किसी का मन मोह लेती है 
उसी प्रकार माया रूपी मोहिनी अपनी ओर सबको आकर्षित कर लेती है ।

माया छाया एक सी, बिरला जानै कोय ।
भगता के पीछे फिरै , सनमुख भाजै सोय ।।
धन सम्पत्ति रूपी माया और वृक्ष की छाया को एक समान जानो । 
इनके रहस्य को विरला ज्ञानी ही जानता है । ये दोनों किसी की पकड़ में नहीं आती । 
ये दोनों चीज़े भक्तों के पीछे पीछे और कंजूसों के आगे आगे भागती है अर्थात वे अतृप्त ही रहते है

कहते है कि माया के दो स्वरुप है । 
यदि कोई इसका सदुपयोग देव सम्पदा के रूप में करे तो जीवन कल्याणकारी बनता है 
किन्तु माया के दूसरे स्वरुप अर्थात आसुरि प्रवृति का अवलम्बन करने पर जीवन का अहित होता और प्राणी नरक गामी होता है ।

हे "सोम" भ्रम को त्यागकर गुरु के सन्मुख अबोध बालक बनकर गुरु के ज्ञान रुपी दूध को पियो 
और अहंकार को त्यागकर गुरु के चरणों को पकड़ लो तभी तेरी गठरिया बच सकती है।

माया अनेक रूप धारण करके सभी लोगो को ठगती है 
और सभी इसके चक्कर में फंस कर ठगे जाते हैं 
परन्तु जिस महाठग ने इस ठगनी को भी ठग लिया हो 
उस महान ठग को"सोॐ''का शत शत प्रणाम है .
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अलख आदेश योगी गोरख 
गुरु योगी धर्मनाथ जी को आदेश आदेश 
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🚩कोई किसी को सत्य नही सीखा सकता है




कोई किसी को सत्य नही सीखा सकता है
बल्कि
सत्य ही स्वंय सबको सीखा देता है

इसलिए किसी और से मांगने से नहीं मिलेगा 
सत्य की कोई भीख नहीं मिल सकती सत्य उधार भी नहीं मिल सकता। 
सत्य कहीं से सीखा भी नहीं जा सकता, 
क्योंकि ~~~~~~~~~~ 
जो भी हम सीखते हैं, वह बाहर से सीखते हैं। और जो भी हम मांगते हैं, वह बाहर से मांगते हैं। 
सत्य पढ़ कर भी नहीं जाना जा सकता, क्योंकि जो भी हम पढ़ेंगे, वह बाहर से पढ़ेंगे और 
सत्य है तो है कहाँ ???

~ सत्य है हमारे भीतर
न उसे पढ़ना है, न मांगना है, न किसी से सीखना है
बस हमे उसे अपने अंदर ही ढूंढ़ना है खोदना है। 
तो "सोॐ'' हमे एक साथ बहुत खजाने प्राप्त हो जाएंगे, 
जो सत्य के खजाने हैं
जय गुरुदेव आदेश आदेश योगी गोरख 
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🚩बालक की हंसी



 अलख शिव गोरख 

वह तेजस्वियों का तेज, 
बलियों का बल, 
ज्ञानियों का ज्ञान, 
साधू का तप है
कवियों का रस है
ऋषियों का गाम्भीर्य 
बालक की हंसी में विराजमान है

ऋषि के मन्त्र गान और बालक की निष्कपट हंसी उसे एक जैसे ही प्रिय हैं। 
वह शब्द नहीं भाव पढता है, 
होंठ नहीं हृदय देखता है, 
वह मंदिर में नहीं, 
मस्जिद में नहीं, 
वो हमारे हृदय में रहता है
बुद्धिमानों की बुद्धियों के लिए वह पहेली है पर एक निष्कपट मासूम को वह सदा उपलब्ध है। 
वह कुछ अलग ही है। पैसे से वह मिलता नहीं और श्रद्धा रखने वालों को कभी छोड़ता नहीं। 
उसे डरने वाले पसंद नहीं, 
वह ईश्वर है, अलख है सबसे अलग पर सबमें रहता है 

 सारे संसार को नियंत्रण में रखता है , 
हर जगह मौजूद है और सब देवताओं का भी देवता है 
एक मात्र वही सुख देने वाला है जो उसे नहीं समझते वो दुःख में डूबे रहते हैं, 
और जो उसे अनुभव कर लेते हैं, मुक्ति सुख को पाते हैं । उस अलख को सोम आदेश करता है ।
जय गुरु धर्मनाथ आदेश आदेश
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