Mar 20, 2017

🚩माथे पर तिलक लगाने का क्या महत्व है





माथे पर तिलक लगाने का क्या महत्व है?….

इसके पीछे आध्यात्मिक महत्व है। दरअसल, हमारे शरीर में सात सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र होते हैं, जो अपार शक्ति के भंडार हैं। इन्हें चक्र कहा जाता है। माथे के बीच में जहां तिलक लगाते हैं, वहां आज्ञाचक्र होता है। यह चक्र हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है, जहां शरीर की प्रमुख तीन नाडि़यां इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना आकर मिलती हैं, इसलिए इसे त्रिवेणी या संगम भी कहा जाता है। यह गुरु स्थान कहलाता है। यहीं से पूरे शरीर का संचालन होता है। यही हमारी चेतना का मुख्य स्थान भी है। इसी को मन का घर भी कहा जाता है। इसी कारण यह स्थान शरीर में सबसे ज्यादा पूजनीय है। योग में ध्यान के समय इसी स्थान पर मन को एकाग्र किया जाता है जिससे मन अमन हो जाता है। आध्यात्मिक गुरु साधक को इसी जगह तिलक करके शिष्य के अंदर आध्यात्मिक शक्ति ट्रांसफर करते हैं और इसी चक्र को जगा देते हैं।
इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए हमारे ऋषियों ने टीका, बिंदी, तिलक को इस जगह लगाने का विधान बनाया और इसे धर्म के साथ जोड़ दिया। अगर किसी के पास गुरु नहीं हैं तो वह इसे सूक्ष्मता से अनुभव नहीं कर पाएगा, लेकिन स्थूलता से भी पूरे भाव के साथ बिंदी या तिलक लगाकर अशांत मन को शांत किया जा सकता है।

इस बात को आप भी महसूस कर सकते हैं। जब मन बहुत परेशान हो या तनाव में हो, तो आंखें बंदकर इस जगह पर मन को ले आएं। मन के यहां आते ही वह शांत व एकाग्र हो जाएगा। सिर्फ टीका लगाने से मन शांत नहीं होगा, बल्कि मन को आज्ञाचक्र पर लाने से वह एकाग्र होगा। तिलक तो माध्यम है मन को आज्ञाचक्र पर लीन करने का। तिलक पर फोकस न करो, बस मन को आज्ञाचक्र में लीन करते जाओ, लीनता बढ़ती जाएगी।
बिना तिलक धारण किए कोई भी पूजा-प्रार्थना शुरू नहीं होती है। मान्यताओं के अनुसार सूने मस्तक को शुभ नहीं माना जाता। माथे पर चंदन, रोली, कुमकुम, सिंदूर या भस्म का तिलक लगाया जाता है।
अनामिका शांति दोक्ता, मध्यमायुष्यकरी भवेत्।
अंगुष्छठ:पुष्टिव:प्रोत्त, तर्जनी मोक्ष दायिनी।।
अर्थात् तिलक धारण करने में अनामिका अंगुली मानसिक शांति प्रदान करती है, मध्यमा अंगुली मनुष्य की आयु वृद्धि करती है, अंगूठा प्रभाव, ख्याति और आरोग्य प्रदान करता है, इसलिए विजयतिलकअंगूठेसे ही करने की परम्परा है। तर्जनी मोक्ष देने वाली अंगुली है। इसलिए मृतक को तर्जनी से तिलक लगाते हैं।
सामुद्रिकशास्त्र के अनुसार, अनामिका और अंगूठा तिलक करने में सदा शुभ माने गए हैं। अनामिका अंगुली सूर्य का प्रतिनिधित्व करती है। इसका अर्थ यह है कि साधक सूर्य के समान दृढ, तेजस्वी, निष्ठा-प्रतिष्ठा और सम्मान वाला बने। दूसरा अंगूठा है, जो हाथ में शुक्र क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। शुक्र ग्रह जीवनी शक्ति का प्रतीक है। इससे साधक के जीवन में शुक्र के समान ही नव जीवन का संचार होने की मान्यता है।
स्त्रीयों को गोल और पुरुषों को लम्बवत तिलक धारण करना चाहिए। तिलक लगाने से मन शांत रहता है। अनिष्टकारी शक्तियों से रक्षण होने के कारण और सात्विकता एवं देवत्व आकृष्ट होने के कारण हमारे चारों ओर सूक्ष्म कवच का निर्माण होता है। आजकल कुछ स्त्रीयाँ टीवी धारावाहिक देखकर विचित्र आकार के टीका लगती हैं तथा बाज़ार में उपलब्ध प्लास्टिक व विभिन्न हानिकारक रसायनो की बिंदी लगाने से भी कोई लाभ नहीं होता अपितु हानि ही होती है क्योंकि उसमे सात्विकता को आकृष्ट करने की क्षमता नहीं होती। तिलक धारण करने से प्रत्येक जीवात्मा को उसके आध्यात्मिक शास्त्रीय लाभ अवश्य मिलते है। चाहे वह हिन्दू हो या अन्य किसी भी पंथ संप्रदाय का हो।.



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