Mar 20, 2017

🚩शिव+शक्ति





शिव+शक्ति

शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन शिवलिंग कहलाते है 


शिवलिंग का अर्थ शिव का प्रतीक
लिंग का संस्कृत में चिन्ह ,प्रतीक अर्थ होता है
शिवलिंग”’क्या है >>>>>

शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। 
स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है।शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनन्त ब्रह्माण्ड ( क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है ) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है।

शिव लिंग का अर्थ अनन्त भी होता है अर्थात जिसका कोई अन्त नहीं है नाही शुरुवात

जैसा कि हम सभी जानते है कि एक ही शब्द के विभिन्न भाषाओँ में अलग-अलग अर्थ निकलते हैं|
ठीक बिल्कुल उसी प्रकार शिवलिंग के सन्दर्भ में लिंग शब्द से अभिप्राय चिह्न, निशानी, गुण, व्यवहार या प्रतीक है।
धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है 
तथा कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है जैसे : प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग
रह्माण्ड में दो ही चीजे है : 
***ऊर्जा और प्रदार्थ | 
हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है|

इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है |

ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है. वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है. 
शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी 
अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान है

लिंग - भग से ही समस्त विश्व की उत्पत्ति है। शकंर ने काम को जलाकर सृष्टि की बुध्दि से ही मैथुन द्वारा सृष्टि की है। 
सृष्टि से पहले ज्ञान और अर्थ (दृश्य) एकमेव हो रहे थे। दृश्य शक्ति के उद्भव बिना चिदात्मा भी अपने को असत् ही मानने लगता है। 
शिव ही शक्ति और शक्ति ही शिव हैं। इस द्वैत में अद्वैत तत्व अनुस्यूत है। योनि त्रिकोण है, केन्द्र या मध्यबिन्दु लिंग है। 
इच्छा - ज्ञान - क्रिया = योनि = त्रिक 
मूलाधार आदि षटचक्र भी योनि ही है। लिंग भी सर्वत्र भिन्न - भिन्न रूप में विराजमान है। 
योनि से अतीत होकर बिन्दु अव्यक्त और लिंग अलिंग हो जाता है कोई गुण, कर्म, द्रव्य बिना योनि - लिंग के नहीं बन सकते। 
याज्ञिकों के यहां भी वेदी की स्त्री रूप में, कुण्ड की योनि रूप में उपासना होती है। आद्याशक्ति साढ़ेतीन फेरे की कुण्डलिनी रूप है। 
वह शिवतत्व को अपने साढ़ेतीन फेरे से वेष्टित किए हुए है। उसी शक्ति के संयोग से शिव अनन्त ब्रह्मांड का उत्पादनादि कार्य करते हैं। 
वही कुण्डलिनी योनि है। पृथ्वी पीठ और आकाश लिंग है।

योनि = दिव्य प्रकृति, 
लिंग = परम पुरूष बिन्दु 
देवी और नाद शिव है। समस्त पीठ अम्बामय है, लिंग चिन्मय है। संसार का मूल कारण महाचैतन्य है और लोक लिड्.गात्मक है। 
ब्रह्मांड की आकृति ही शिवलिंग है। शिव स्वयं अलिंग हैं, उनसे लिंग की उत्पत्ति होती हैं शिव लिंगी और शिवा लिंग हैं। रूद्र एक मात्र स्वामी, अतीन्द्रियार्थ ज्ञानी और हिरण्यगर्म को उत्पन्न करने वाले हैं। वे अग्नि में, जल में, औषधि एवं वनस्पतियों में रहते हैं। वे सबका निर्माता हैं। रूद्र से भिन्न दूसरा तत्व ही नहीं है।

तम को ही सबका आदि और कारण कहा गया है। उसी में वैषम्य होने से सत्व, रज का उद्भव होता है। भगवान तम के नियंता हैं, वे तामस नहीं हैं। शिव से भिन्न जो कुछ भी है, उन सबके संहारक शिव हैं।

कूटस्थ एथाणु पर ब्रहम ही शिव हैं। स्थाणु (ठँठ) लिंगरूप में व्यक्त शिव है, अपर्णा जलहरी है।

शुद्ध शिवतत्व त्रिगुणातीत है। त्रिमूर्ति के अंतर्गत शिव परम बीज, तमोगुण के नियामक हैं। 
सत्व के नियमन की अपेक्षा तम का नियमन बहुत कठिन है। 
सर्वसंहारक तम है। शिव ही तम को वश में रखते हैं। अव्यक्त तत्व लिंग है। 
माया द्वारा एक ही परब्रह्म परमात्मा से ब्रह्मांडरूप लिंग का प्रादुर्भाव होता है।

चौबीस प्रकृति - विकृति, पचीसवां पुरूष, छबीसवां ईश्वर यह सब कुछ लिंग ही है।

उसी से ब्रहमा, विष्णु, रूद्र का आविर्भाव होता है।

प्रकृति से सत्व, रज, तम इन तीन गुणों से त्रिकोण योनि बनती है।

प्रकृति में स्थित निर्विकार बोधरूप शिव तत्व ही लिंग है। इसी को विश्व - तेजस - प्राज्ञ, विराट हिरण्यगर्म - वैश्वानर, जाग्रत - स्वप्न - सुषुप्ति, वहक् - साम - यजु, परा - पश्यंति - मध्यमा आदि त्रिकोणपीठों में तुरीय, प्रणव, परा वाक् स्वरूप लिंगरूप में समझना चाहिए। ''अउम '' इस प्रणवात्मक त्रिकोण में अर्ध्दमात्रास्वरूप लिंग है।
*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*


***************************************************************************************************************************************************************************

No comments:

Post a Comment