मंदिर ---श्मशान
एक हमारे मन को हमारे अन्तर्मन अर्थात अन्तरात्मा से जोड़ना सिखाता है
मार्ग सुगम बनाता है शून्य(शिव)में मिलने के लिए
मार्ग सुगम बनाता है शून्य(शिव)में मिलने के लिए
तो एक हमारे कर्मो की रुपरेखा निर्धारित करने के लिए और आगे का मार्ग उपलब्ध करने का कक्ष मात्र है (चेंजिंग रूम) यहाँ पर सबको रुकना ही पड़ता है
जन्म या शून्य(शिव) में विलय के मार्ग हेतु।
एक आदि है तो एक अंत
मंदिर को जानने के लिए मन के अंदर जाना पड़ेगा अन्तरात्मा से मिलन हेतु।
अंत के लिए आरम्भ आवश्यक है.
श्मसान को यदि समझना है तो लिए खुद मृत्यु बनना पड़ेगा
तभी विजय हमारा वरण करेगी.
जब हम भक्ति मार्ग पर चलते है तो"सोॐ''
सामान्य से --------- खास
मानव से --------- देव
अंत में शव से --------शिव बन सकते है ।
यानि शिव में विलीन हो सकते है।
यानि शिव में विलीन हो सकते है।
मोक्ष प्राप्त हो सकता है।
ये सब बात करने से नही कर्मो से निर्धारित होता है
सागर की गहराई तो वही ही जान सकता हैं जो सागर में डुबकी लगा सकें।
जय गुरु धर्मनाथ आदेश आदेश
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