Mar 16, 2017

🚩 शरीर





शरीर

हमारे शरीर मे 5 प्राण 7 चक्र और 5 इंद्री ये ऊर्जा के स्रोत होते है। ये ऊर्जा बाहर से लेते है तथा 5 कर्मेन्द्रि ऊर्जा विसर्जन के स्रोत होते है । मंत्र जाप करने से शरीर मे ऊर्जा बढ़ेगी । अगर ऊर्जा बढ़ेगी तो शरीर निरोगी रहेगा । अगर शरीर निरोगी रहेगा तो आयु बढ़ेगी । और आयु बढ़ेगी तो आप लोगो का कल्याण कर सकते हो । मंत्रों का उच्चारण आप 5 प्राण, 5 इंद्री , 7 चक्र और एक जिव्या से कर सकते हो । जिव्या से किया हुआ मंत्र तो मानो जैसे आपने अपने घर मे एक मंत्र की CD लगा रखी है । उसका आपको कोई लाभ नहीं मिलेगा तथा आपका हमेशा मन भटकता ही रहेगा ।
सबसे पहले आपको मंत्रो को अपने अन्तःकरण मे करने का अभ्यास करना चाहिए । ये सभी अभ्यास आपको कम से कम 1 महीने अवश्य करने चाहिए । एक महीने आप ॐ का लंबा उच्चारण मूलाधार चक्र से प्रारम्भ करे । ऐसा करने से आपका मूलाधार चक्र ऊर्जावान हो जाएगा । फिर आपको नाभि चक्र से ॐ का उच्चारण करना चाहिए । ऐसा करने से आपके शरीर की नस और नाड़ियाँ ऊर्जावान हो जाएंगी । फिर धीरे धीरे सभी चक्रो और 5 प्राणो और 5 इंद्रियों से ॐ का उच्चारण करना चाहिए । ऐसा करने से आपके शरीर के 17 ऊर्जा के केंद्र ऊर्जावान हो जाएँगे । अगर आपको भूख और प्यास भी लगती है तो ये ऊर्जा के केंद्र तपस्या के समय आपको ऊर्जा की आपूर्ति करेंगे ।

इतना अभ्यास करने के बाद आप किसी एक मंत्र को आप सिद्ध करने के लिए चुन सकते है । उस मंत्र को आप अपने त्रिवेणी चक्र यानि दोनों आंखो के बीच मे नाक के उपर लेकर आए । फिर उस मंत्र के एक एक शब्द को दोनों बंद आंखो से धीरे धीरे पढे और उच्चारण करते जाये । आपकी सारी इंद्री और मन इस मंत्र पर काम करना शुरू कर देंगे । ऐसे स्थिति मे अगर मन भटकने की कोशिस भी करेगा तो आपका मंत्र मन को भटकने नहीं देगा । बस इसी मंत्र को बार बार करते जाये तो आपका मन और आपकी इंद्री आपके बस मे होंगी । बस यह आपकी तपस्या का पहला पड़ाव है ।

नाभि समस्त जीवन चक्र का आधार है. 

ध्यान रखिए मैं जीवन नहीं बल्कि जीवन चक्र की बात कर रहा हूं. इसलिए साधना मार्ग पर जो साधक आते हैं उन्हें कहा जाता है कि वे नाभि चक्र पर अपने स्वांस को केन्द्रित करें. इसका गहरा अर्थ यह होता है कि जब शिक्षक आपको नाभि पर स्वांस को केन्द्रित करने के लिए कहता है तो वह आपको आपके जीवन चक्र के साथ जोड़ने की कला सिखाता है.

अब सवाल है कि नाभि चक्र तक स्वांस को ले कैसे जाएं? जो जितना उद्विग्न, गुस्सैल और चंचल होता है उसकी स्वांस उतनी ही नाभि के ऊपर चलती है. लेकिन जो जितना सहज, बोधयुक्त और शांत होता है उसकी स्वांस उतनी ही नाभि के पास से चलती है. यह क्रिया अपने आप होती है आपको कुछ करना नहीं होता है. जब आप शांत होतें हैं तो आपको अनुभव होता है कि आपकी स्वांस नाभि केन्द्र के आस पास से चल रही है. रात में आप सोते हैं तो स्वांस अपने आप नाभि केन्द्र से चलने लगती है. ऐसा क्यों होता है?

ऐसा इसलिए होता है कि आपके शरीर पर आपके तर्क और भौतिक विचारों का प्रभाव कम हो जाता है. हमारे अस्तित्व/हमारे मूल और हमारे बीच में जो सबसे बड़ी बाधा है वह भौतिक विचार ही हैं. हम जितने बनावटी होते हैं अपने अस्तित्व से उतने ही कटे हुए होते हैं. इसलिए आप अपने सामान्य जीवन में नैसर्गिक रहने की कला विकसित करिए. ज्यादा बनावटी जीवन जीने से बचिए. थोड़ा बहुत जीना भी पड़े तो सोने से पहले उस बोझ को उतार दीजिए. क्योंकि अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो वह बनावटी जीवन धीरे धीरे आपको खोखला कर देगा.

इसलिए पहला काम तो यही कि बनावटी जीवन, बनावटी विचार, झूठे अहंकार इन सबसे तौबा करिए. इनका कोई मतलब नहीं है. आप को लगता है कि आप अपना स्तर उठा रहे हैं लेकिन हकीकत में आप अपने लिए ही संकट पैदा कर रहे हैं. इसलिए इनसे बचने की कोशिश करिए. इसका सीधा असर मन पर होगा जो आपके शरीर पर सकारात्मक रूप से दिखाई देने लगेगा.

दूसरा काम, जब कभी मन थोड़ा एकाग्र हो और आप आंख बंद करके कहीं बैठे हों तो अपनी नाभि पर अपने मन को ले जाइये. ऐसा करते हुए सिर से सब प्रकार के बोझ उतारते जाइये. यह दोनों क्रिया एकसाथ करिए. नाभि के करीब पहुंचते चले जाएंगे. विचारों के क्रम को हटाते जाइये और नाभि के आस पास मन को केन्द्रित करते जाइये. चार से छह महीने में अच्छी प्रगति होगी. धैर्य के साथ आगे बढ़ते जाइये.

तीसरा काम, थोड़ा और गहरी साधना में उतरे हुए लोगों के लिए जरूरी है कि श्वास को नाभि से सूक्ष्म होते हुए देखें. एक अवस्था ऐसी आयेगी कि स्वास गायब हो जाएगी. कोई स्पंदन नहीं होगा. नाभि पर भी कोई स्पंदन नहीं होगा. जब ऐसा होना शुरू हो तो प्रकाश को इड़ा-पिंगड़ा में संचरण करते हुए अनुभव कर सकेंगे. मूलाधार से सहस्रार तक शून्य का संचरण अनुभव होगा जिसके बाद ही ध्यान घटित होता है. जागृति होती है




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