माया महाठगनी सब जानि !
गुरु गोरख नाथ के गुरु थे परम योगी गुरु मत्स्येन्द्र नाथ ... जिन्हे लोग मछिन्दर नाथ के नाम से भी जानते हैं ... हमने बचपन मे एक कहावत सुनी थी कि "जाग मछिन्दर गोरख आया " संभवतयाः यह कहानी तो आप में से बहुतो ने सुनी हो ....यह कहानी गुरु और शिष्य के प्रेम की पराकाष्ठा की कहानी है ...यहा हम इन दोनो ही योगियो की एक अन्य कहानी की बात करेंगे जो की कम प्रचलित है...
गुरु शिष्य के रिश्ते बिल्कुल पिता-पुत्र जैसे ही होते हैं ... और इसको गुरु शिष्य ही समझ सकते हैं ... हुआ ऐसा कि गुरु मछिन्दरनाथ जी भ्रमण करते हुये पुर्वोत्तर भारत की यात्रा पर थे ... और यात्रा के क्रम में वहां की एक राज कन्या के रुप योवन के जादू मे गिरफ़तार हो गये ... और उस राज कन्या से शादी कर ली... सब योगीगिरि को त्याग वे मोह माया मे पड गये और वहीं रहने लग गये... वहीं उनको राजकन्या से एक पुत्र की प्राप्ति भी हो गई ... इधर गोरख नाथ और उनके दुसरे गुरु भाईयों को दुसरे पन्थ वाले ताने मारा करते थे... और कहा करते थे कि ये लोग काहे के योगी हैं ? ढोंगी हैं ! इनका गुरु मछिन्दरनाथ तो शादी करके दुनियादारी मे पडा है ... आदि आदि ! और उधर गुरु की गलती शिष्यों को भुगतनी पड रही थी... गोरखनाथ जी को भी ये सब बहुत बुरा लगता था... गोरख ने अपने साथियों से इस बात की चर्चा की... और यह तय हुआ की - अब बहुत हो गया, गुरु मछिन्दर नाथ को मोह जाल से निकाल कर वापस लाना ही पडेगा... और उनको लाने गोरख जायेंगे ... क्योंकी गोरख उस समय तक महान सिद्धयोगी बन चुके थे ...आखिर गुरु को ढुंढते गोरख वहां पहुंच गये जहां गुरु मछिन्दर का महल था... सन्देश भिजवाया पर गुरु मछिन्दर ने हर बार मिलने मे आनाकानी की... उनको लग गया था कि ये मुझको लिये बगैर वापस लौटने वाला नही है ... अब गोरख को वहां काफ़ी समय हो गया ... पर गोरख अपने गुरु से अपने मन की बात कह सकें, इतना मौका भी उनको नही मिला... मछीन्दर नाथ जी ने गोरख को सब सुख सुविधा दे रखी थी... पर जैसे ही गोरख काम की बात पर आते , वो बात पलट दिया करते थे... चूँकि वो गुरु थे अत: गोरख उनसे कुछ उल्टा सीधा भी नही बोल सकते थे... मछिन्दर तो हर समय उस छोटे बच्चे में ही लीन रहते... वहां का महल भी बडा रमणीय था... पास ही बगीचा और साथ ही बहती नदी ... वहीं गुरु मछीन्दर, बालक को लिये घूमा करते थे... उनका प्रेम अब रानी मे कम और बेटे मे ज्यादा हो गया था ... गोरख इसी उधेड बुन मे रहते थे कि किसी तरह गुरु अकेले मे मिल जायें और उनको समझाने की कोशीश करें... पर मछीन्दर के साथ तो कभी रानी कभी दासियां बनी रहती थी... एक दिन ऐसा हुआ की बच्चे को लेकर मछीन्दर बगीचे मे टहल रहे थे... और देव योग से अकेले ही थे और राजकुमार ने उनकी गोद मे मल मुत्र त्याग कर दिया ... और दोनो पिता पुत्र उसमे गंदे हो गये ... अब गोरख ने देखा की उनके गुरु बडे प्रेम से उस बच्चे की गन्दगी साफ़ कर रहे हैं ... इस बीच मौका देख कर वे मछीन्दरनाथ के पास पहुंचे और बोले - गुरुदेव ! आप छोडो मै धो कर लाता हूं राज कुमार को ... मछीन्दर नाथ ने सोचा - ठीक है तब तक मैं अपने आपको साफ़ कर लेता हुं ... जब थोडी देर हो गई और गोरख नही आये तो उनको चिंता होने लगी... इतनी देर मे गोरख उनको अकेले आते दिखाई पडे ... उनकी चिन्ता और बढ गई... मछिन्दर बोले - राजकुमार कहां है गोरख ?... गोरख ने कहा - गुरुदेव उसको तो मैने धो कर सुखा दिया ... अवाक् मछिन्दर ने अगला प्रश्न किया - इसका क्या मतलब ?... गोरख बोले - गुरु जी आपने उसको धो कर लाने को कहा था ... और वो बुरी तरह गन्दगी मे सना था सो मैने उसकी दोनो टांगे पकड कर उल्टा किया... फ़िर उसको खूब सर की तरफ़ से नदी मे डुबोया निकाला... और फ़िर जैसे धोबी कपडों को पछाडता है ... उस तरह मैने उसको पत्थर पर पटक पटक कर पछीटा... तब जाकर बड़ी मुश्किल से उसकी गन्दगी साफ़ हुई ... और फ़िर उसमे ज्यादा जान तो थी नही ... इतना धोने के बाद केवल कुछ हड्डियां ही बाकी बची थी... सो वो सूखने के लिये वहीं एक पत्थर पर रख आया हूं... उधर गुरु मछिन्दर तो इतना सुनते सुनते ही आधे पागल जैसे हो गये... और उन्होने पुछा ! अरे गोरख - ये क्या किया तुने ! अरे मेरे राजकुमार ने तेरा क्या बिगाडा था ? हाय मेरा बेटा कहां है ? इस तरह प्रलाप करने लग गये और थोडी देर बाद बेहोश हो गये ... अब गोरख उनको होश मे लाने का उपाय करने लगे ...
गुरु मछिन्दरनाथ जी पुत्र वियोग मे अर्ध मुर्छित से थे ... और इधर गोरख सोच रहे थे कि मोहमाया भी क्या चीज है ? जिसने गुरु मछिन्दर नाथ जैसे महाज्ञानियों बुद्धि को भी भ्रष्ट कर दिया है... गोरख ने गुरु को जगाने की
बडी युक्तियां की पर सब बेकार हुई ... असल मे गोरख जानते थे की जब तक इनका मन पुत्र मे रहेगा, तब तक गुरु वापस नही जायेंगे... और गुरु यदि वापस नही जायेंगे तो शिष्यों को दुसरे लोगो के ताने सुनते रहने होंगे... गुरु गोरख इतने सिद्ध महायोगी थे कि अगर किसी मरे हुये पशु की हड्डियां भी हों तो अपने योग बल से उसमे जान डाल देते थे... और इन गोरखनाथ को आकाश मार्ग से यानि हवा मे उडने की सिद्धि भी प्राप्त हो चुकी थी... और ये नही चाहते थे कि बालक को वापस जिन्दा किया जाये... ये तो बस किसी तरह गुरु का भ्रम तोड कर उनको वापस ले जाना चाहते थे... जब गुरु होश मे आये तो फ़िर से उनका प्रलाप शुरु हो गया ... तब गोरख ने लाख समझाया कि महाराज ये सब झूंठी माया है आप जागो और मेरे साथ चलो ... पर मछिन्दर तो जैसे पूरे मोह ममता मे डुबे थे ... आखिर गोरख ने एक पैन्तरा फ़ेका और बोले - अगर आप चाहते हैं कि ये बालक जिवित हो जाये तो आप बदले मे क्या दे सकते हैं ? मछिन्दर बोले - इस बालक के एवज मे मैं अपने प्राण भी दे सकता हुं ... गोरख तो इसी घडी के इन्तजार मे थे... उन्होने कहा की गुरु आप तो संकल्प करो इस बात का ! फ़िर मैं किसी से बात करके देखता हूं ... मछिन्दर बोले - गोरख , जल्दी कर ! कहीं इस विरह वेदना मे मेरे प्राण ही ना निकल जायें ... गोरख ने मन ही मन कहा - की वो तो मैं नही निकलने दूंगा ... उधर जैसे ही मछिन्दर ने संकलप लिया वैसे ही गोरख ने उस बालक की हड्डियां इक्कठी करके उसको जिन्दा कर दिया ... और मछीन्दर नाथ के तो प्राण मे प्राण लौट आये ... अब गोरख ने उनको इशारा किया कि अब चलो ! बहुत हो गई आपकी घर गृहश्ती ! और अब तो शर्त भी हार चुके हो अपना वचन निभाओ ... मछीन्दर अनमने से वापसी के लिये तैयार होने महल चले गये ... वहां उन्होने रानी को सारी बात बताई ... रानी भी जानती थी कि इनके शिष्य बडे पराक्रमी हैं ... और एक ना एक दिन तो उनको लौटना ही होगा ... रानी को उनसे एक पुत्र की अभिलाषा थी और वह भी पूरी हो चुकी थी सो रानी ने उन्हे विदा किया ... पर चुंकी पत्नि थी इसलिए साथ मे एक पोटली मे सोने का एक वजनी टुकडा भी रख दिया ... उसने सोचा की अब इनको फ़कीरी की आदत तो रही नही सो यह इनके रास्ते मे कहीं बख्त बेबख्त काम आयेगा... दोनो गुरु-चेले वहां से चल दिये ... अब रास्ते मे कहीं जंगल मे रुकते कहीं पहाड पर ... अब यहां मछीन्दर कहते, - गोरख कही आसपास बस्ती देख कर रात्री विश्राम करेंगे ... और गोरख को जंगल मे रुकने का मन रहता ... उधर गोरख को मालूम नही की इस पोटली मे माया है... और इसी माया को कोई चोर डाकू ना लूट ले इसिलिये मछिन्दर किसी ग्राम के आस पास रुकने की जिद्द करते थे... गोरख ने देखा की गुरु के पास एक पोटली है इसको नही छोडते, आखिर इसमे है क्या ? ... सोते जागते उनका मन इस पोटली मे ही बस रहा था... क्यों गुरु इतने
अनमने से चल रहे हैं ... एक दिन मछिन्दर को जरा जल्दी मे शौच लग गया और वो पोटली वहीं भूल कर चले गये...पीछे से गोरख ने उसे खोलकर देखा तो पाया की इसमें तो सोना है... तब समझ आया कि गुरुजी क्यों अनमने हैं ? और जंगल मे रुकने से क्यों डरते हैं ... गोरख ने ये पोटली ऊठाकर पहाड से नीचे फ़ेंक दी ... मछीन्दर को शौच से वापसी मे पोटली याद आयी और जल्दी जल्दी वापस आये ... और नजरों से इधर उधर देखना शुरु
किया ... पर संकोचवश गोरख से बहुत देर पूछा भी नही... आखिर सब जगह देख दाख कर उन्होने गोरख से पूछा - गोरख इधर एक पोटली थी ! देखी क्या ? गोरख बोले - गुरुजी वो आफ़त की पोटली थी और अब आप उस आफ़त से निश्चिंत रहो ... मैने वो आफ़त पहाड से नीचे फ़ेंक दी ... आप आराम से चलो अब चोर उचकों का भी डर नही ... और इस तरह गुरु मछिन्दर नाथ जी का भ्रम टुटा... और वो वहां से वापस अपने धूने पर पहुंच कर तप मे लीन हो गये ... सच है - मोह और माया अच्छे अच्छे ज्ञानियों की बुद्धि भ्रष्ट कर देती है........
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