Mar 20, 2017

🚩माया ठगनी

घूम रही माया ठगनी, ठग लेगी तेरी गठरिया रे
मोह का पिंजरा ये जग है, यहां कल की नहीं खबरिया रे




घूम रही माया ठगनी...
ऊपर तेरे ऊंचा परबत, नीचे गहरी खाई है
मौत पकड़ ले जायेगी इक दिन, चले नहीं चतुराई है
भले-बुरे हर काम पे, उस मालिक की कड़ी नजरिया रे...
घूम रही माया ठगनी...

माया बहुत ही लुभावनी है । 
जिस प्रकार मीठी खांड अपनी मिठास से हर किसी का मन मोह लेती है 
उसी प्रकार माया रूपी मोहिनी अपनी ओर सबको आकर्षित कर लेती है ।

माया छाया एक सी, बिरला जानै कोय ।
भगता के पीछे फिरै , सनमुख भाजै सोय ।।
धन सम्पत्ति रूपी माया और वृक्ष की छाया को एक समान जानो । 
इनके रहस्य को विरला ज्ञानी ही जानता है । ये दोनों किसी की पकड़ में नहीं आती । 
ये दोनों चीज़े भक्तों के पीछे पीछे और कंजूसों के आगे आगे भागती है अर्थात वे अतृप्त ही रहते है

कहते है कि माया के दो स्वरुप है । 
यदि कोई इसका सदुपयोग देव सम्पदा के रूप में करे तो जीवन कल्याणकारी बनता है 
किन्तु माया के दूसरे स्वरुप अर्थात आसुरि प्रवृति का अवलम्बन करने पर जीवन का अहित होता और प्राणी नरक गामी होता है ।

हे "सोम" भ्रम को त्यागकर गुरु के सन्मुख अबोध बालक बनकर गुरु के ज्ञान रुपी दूध को पियो 
और अहंकार को त्यागकर गुरु के चरणों को पकड़ लो तभी तेरी गठरिया बच सकती है।

माया अनेक रूप धारण करके सभी लोगो को ठगती है 
और सभी इसके चक्कर में फंस कर ठगे जाते हैं 
परन्तु जिस महाठग ने इस ठगनी को भी ठग लिया हो 
उस महान ठग को"सोॐ''का शत शत प्रणाम है .
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अलख आदेश योगी गोरख 
गुरु योगी धर्मनाथ जी को आदेश आदेश 
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